Friday 7 October 2011

लोकनायक जयप्रकाश नारायण


आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी की ३२वी पुण्यतिथि है!  पिछले कुछ दिनों से उनके बारे में ही पढ़ रही थी! सच कहूं तो हमारी पीढ़ी जे.पी. के बारे में ज्यादा नहीं जानती है! किन्तु पिछले दिनों अन्ना हजारे मोवमेंट के दौरान श्री राजीव मित्तल जी से कई बार उनके बारे में बात हुई तो जे.पी. को जानने की प्रबल उत्कंठा जागृत हुई! 

वह महामानव जिसने सन बयालीस के 'भारत छोडो' आन्दोलन में बड़ी प्रभावी भूमिका निभाई थी, समाजवादी कांग्रेस के अग्रणी नेता के रूप में देश के नवयुवकों को नयी दिशा दी थी! चम्बल घटी के अक्खड़ डाकुओं से विनम्र आत्म-समर्पण प्राप्त किया था, जो सर्वोदय और अन्त्योदय जैसी लहरों के प्राणदाता बने थे! जिन्होंने संपूर्ण क्रांति जैसा लोकोद्धारक कार्यक्रम केवल सिद्धांत रूप में पेश ही नहीं किया, अपितु उसे कार्यान्वित करने के लिए भरसक प्रयास भी किया था और जो 1977 में सभी विरोधी दलों के बीच ऐक्य स्थापित करने वाली प्रेरक शक्ति के रूप में उभरे थे! ऐसे वैविध्य-पूर्ण मानव की जीवन कथा को पढ़कर मैं धन्य हो गयी!  

मेरा मानना है आज भी जे.पी. के जीवन और विचारों का अध्ययन देश के युवाओं को आज की क्षुद्र, भ्रष्ट और पतित राजनीति का परित्याग करके उसे पुनः एक उच्च  नैतिक धरातल पर प्रस्थापित करने की प्रेरणा देगा, यह मेरा परम विश्वास है! जे. पी. आधुनिक भारत के अनन्यतम क्रांति शोधक थे! मार्क्सवाद से समाजवाद और समाजवाद से सर्वोदय तक की जे.पी. की क्रांति-यात्रा वास्तव में उनके हृदय की असीम करुणा, समाज के सबसे गरीब और त्रस्त एवं दुखी तबके के प्रति उनकी संवेदना एवं दर्द से ही प्रेरित थी! शायद हमारी सबसे बड़ी असफलता, खामी एवं कमजोरी इसी तथ्य में निहित है कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम गरीबी, अशिक्षा और शोषण से आम आदमी को मुक्ति नहीं दे पाए! साम्प्रदायिकता, हिंसा एवं आतंक की प्रचंड ज्वाला में यही निरीह आम आदमी झोंका जाता रहा है जो जे.पी. के समस्त प्रयासों एवं विचारों का केंद्र बिंदु था!

इस नैराश्यपूर्ण वातावरण में जे.पी. के विचार आज भी उतने ही प्रेरक, सामयिक और प्रासंगिक हैं जितने वे कल थे! आपातकाल में जेल के एकांतवास में  लोकतंत्र के इस महानतम समर्थक के गहन विक्षोभ एवं करुणा का परिणाम है उनकी ये प्रथम कविता...................

जीवन विफलताओं से भरा है
सफलताएँ जब कभी आयीं निकट
दूर ठेला है उन्हें निज मार्ग से
तो क्या वह मूर्खता थी?
नहीं!
सफलता और विफलता कि परिभाषाएं भिन्न हैं मेरी
इतिहास से पूछो कि वर्षों पूर्व
बन नहीं सकता प्रधानमंत्री क्या?
किन्तु मुझ क्रांतिशोधक के लिए
कुछ अन्य पथ ही मान्य, उद्दिष्ट थे!
पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के,
पथ संघर्ष के, संपूर्ण क्रांति के!
जग जिसे कहता विफलता
थीं शोध कि वे मंजिलें,
मंजिलें वे अनगिनत हैं
गंतव्य भी अति दूर है,
रुकना नहीं मुझको कहीं
अवरुद्ध जितना मार्ग हो!
निज कामना कुछ है नहीं
सब है समर्पित ईश को
तो विफलताओं पर तुष्ट हूँ अपनी
और यह विफल जीवन 
शत शत धन्य होगा 
यदि समानधर्मी प्रिय तरुणों का
कंटकाकीर्ण मार्ग 
यह कुछ सुगम बना जाये!

उनके विचारों का अनुकरण ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है!  उन्ही के शब्दों में वास्तविक क्रांति वो क्रांति है जो जीवन मूल्यों में क्रांति लाने में सफल हो! जयहिंद!

3 comments:

  1. ek ojpurn post...bahut bahut badhai, aisee baat kahne ke liye!
    kabhi hamare blog pe aayen...ab follow kar raha hoon, barabar ka aana rahega

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  2. वास्तविक क्रांति वो क्रांति है जो जीवन मूल्यों में क्रांति लाने में सफल हो
    shat partishat saty sarthak post

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  3. सुन्दर, सामयिक प्रस्तुति,आभार.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

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